लाड़ली बहिना
लाड़ली बहिना
×××÷ ÷÷×××××÷÷×××
मनाने रक्षा बंधन घर में आई लाड़ली बहिना ।
सभी खुश इस तरह से
जगमगाई लाडली बहिना ।
नहीं मानी मनाया था लगाया दिल जिहादी से,
हुए टुकड़े कई जंगल में पाई लाडली बहिना।
जरा सी बात में तुनके व रूठे और नित मुझसे,
दिखा रोना करे जमकर लडाई, लाडली बहिना।
किसी भी बात की बंदिश नहीं,पर ध्यान में रखना,
नहीं भैया की हो जग में हँसाई,लाडली बहिना ।
हजार रुपये ही इस बार कर पाया हूँ मुश्किल से,
नहीं दे सकता आगे कुछ विदाई लाडली बहिना।
अभी तक लौट आओ घर अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा,
इसी में हर तरह से है भलाई लाडली बहिना।
फसल बिगडी है तेरे हाथ पीले किस तरह से हों ।
फिकर मन में अभी से ही समाई लाडली बहिना।
कहाँ गो मांस भक्षी व कहाँ गोपाल की पूजक,
कहाँ कीमा कहाँ मक्खन मलाई लाडली बहिना।
बनाया मूर्ख हमको झूठे वादे
बोल जिनने भी,
गले न दाल उनकी अब गलाई
लाडली बहिना ।
रहे कायस्थ सक्सेना जहां में नाम ऊँचा कर ,
किसी ने कुल की इज्जत न गिराई, लाडली बहिना ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
30/6/23