लाडली बेटी
लाडली थी मैं अपनी पापा की,
हाँ, लाडली थी मैं अपनी पापा की,
डॉक्टर बेटी कह के पुकारते…
हाँ,कितने प्यार से पुकरते…
कायर थे वो,
जिन्होंने किया ये बर्बरता,
लहूलुहान किया मेरा अंग,
मेरी चीर हरण कर,
मेरे मुँह को बांध कर,
तोड़ा मेरी एक-एक अंग,
मेरी सपना चकनाचूर किया।
रात-दिन न देखा मैंने,
बस निभाई अपनी कर्तव्य,
देखी थी सिर्फ अपनी जिम्मेदारी,
36 घंटे की सेवा कर के,
नहीं बचा पाई अपनी जान।
और कुछ मोहलत मिल जाती,
पालकी में मैं बैठ जाती,
पापा के अरमानों को पूरी कर देती,
काश, और कुछ मोहलत मुझे मिल जाती।
साक्षी है ईश्वर भी,
जिसने देखी मेरी यह हार,
अब मेरी है अंतिम ख्वाहिश,
जालिम को मिले ऐसा दंड,
देख कर यमराज भी हो जाए दंग।