“लाचार”
सिर्फ जिस्म बेचा उसने,
क्या और भी कुछ बेचना बाकी हैं
तुम सब ने मिलकर नोचा,
क्या और भी नोंचना बाकी हैं,
हा उसकी शायद कोई मजबूरी हो,
दो वक्त की रोटी और दावा जरूरी हो,
फिर तुम कैसे उंगली उठा उठा कर,
जवाब मांगते कि ऐसे काम की क्या जरूरी हैं,
हालात बदल गए उसके भी,
एक पति था जो शराब ने मार दिया,
एक लाडला था,
जो इंसाफ ने मार दिया।
फिर भी नहीं हारी वो,
खुद का रोजगार स्वीकार किया,
फिर किसी की आंखों में खटकी,
बेशर्म ने दुराचार किया,
अब क्या था ?
जीने के लिए खुद को बाजार में किया,
बस अबला की कहानी,
तुम सुनो और जुबां पर लगाम रखो,
लाचार ने क्या किया।
@निल(सागर,मध्य प्रदेश)