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18 May 2020 · 1 min read

लाचार भूख व बीमारी

प्यास भी बुझती नहीं,
भूख भी लगती नहीं,
गाँव जाने की ललक में,
पैरों के छाले दिखते नहीं ।

सोया नहीं कई रातों से,
फिर नींद क्यूँ आती नहीं,
शासक मैं बहुत मजबूर हूँ,
महसूस करता क्यूँ नहीं ।

गर मुझे मिलता जो खाने,
दर-दर मैं भटकता नहीं,
भूख से चाहे दम निकले,
बीमारी से मैं डरता नहीं ।

मजदूर हूँ बेशक़ जहाँ का,
आदत से मैं मजबूर नहीं,
“आघात” चलता जा अकेला,
तेरे साथ कोई हाक़िम नहीं ।

Language: Hindi
6 Likes · 2 Comments · 392 Views
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