लाचार बचपन
छोटी हूँ साहब अभी नादान हूँ,
पढ़ाई क्या है इससे अनजान हूँ,
अभी अभी पता चला है कि,
स्कूल में पढ़ाई कराई जाती है,
शिक्षा ज्योत वहाँ जलाई जाती है,
बच्चों के अंधेरे जीवन को ,
वहाँ रोशन किया जाता है,
जीवन जीने के सब गुर,
वहाँ सिखाया जाता है
साहब मैं अक्षर सीखना चाहती हूँ
दुनियाँ को मैं पढ़ना चाहती हूँ।।
क्या कसूर है मेरा देखो,
कि मेरे ऊपर छत नही,
अनाथ हूँ इस दुनियाँ में,
माँ-बाप का हाथ सर नही,
नही पता मेरी माँ की सूरत,
ममता नही मैंने पाई है,
माँ का दुलार कैसा होता है,
कभी जान नही पाई है,
मुझे भी ममता का साथ चाहिए,
मुझे भी पढ़ना है स्कूल चाहिए।।
छोटी हूँ साहब अभी नादान हूँ
जीवन क्या होता है नही मालूम।
मुझे स्कूल जाना है साहब
मुझे भी अक्षर ज्ञान चाहिए
इस दुनियाँ में एक छोटी सी
अपनी एक पहचान चाहिए।
मैं पढ़ाई करके खूब बढ़ना चाहती हूँ
अपने ही पंख से ऊपर उड़ना चाहती हूँ
मैं पढ़ सकू ऐसा एक स्कूल चाहिए
जहाँ कोई न पूछें लाचारी मेरी
साहब ! ऐसा एक आशीर्वाद चाहिए।।
लेखक
श्याम कुमार कोलारे
छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश
मो. 9893573770