लाचार द्रौपदी
न्याय?
कहाँ है न्याय?
कैसा होता है न्याय?
क्या तुमने सुना नहीं?
लाठी
जिसके हाथ में
होती है
भैंस
उसी की होती है
यही तो न्याय है
क्योंकि जब
शासन का धृतराष्ट्र अन्धा हो
और सत्ता की गांधारी
बाँध लेती है
अपनी आँखों पर
पक्षपात और
भ्रष्टाचार की पट्टी
न्याय की तुला
दे देती है
कपट शकुनि के हाथों में
और उसकी संवेदना
जुड़ जाती है
कुव्यवस्था के दुर्धोधनों के साथ
तब कपट शकुनि
चलता है अपनी
कुटिल और घिनोंनी चालें
सत्य और धर्म के
युधिष्ठिर हारते हैं हर दाँव
और हर बार
दाँव पर लगती है
निरीह/लाचार द्रौपदी