लाचार किसान!क्या है समाधान?
मजदूर तो दिख ही रहा था बेजार,,
अब किसान भी दिखाई दे रहा है लाचार,
हर दिन,हर माह उसका श्रम लगता है,
किन्तु फल तो उसको,फसल पकने पर मिलता है,
और फसल पकने में जो समय रहता,
तब तक वह सपने देखने लगता है,
लेकिन जब वह नहीं होता है प्रर्याप्त,
जितना उसने दिया अपना श्रम,
फल मिलता जब उससे कम,
तो कैसे वह अपना खर्च उठाए,
कैसे वह अपनी गृहस्थी चलाएं,
कैसे वह फिर अगली फसल उगाएं,
लागत ही जब पुरी ना मिल पाए,
ऐसे में वह जाए तो कहां जाए,।
मजदूर भी अपनी मजदूरी मांगते हैं,
खाद बीज पर भी दाम लगते हैं,
लेकिन जब फसल हो जाती है तैयार,
आढ़ती भी लूटने को रहते हैं तैयार, सरकारें विपणन की व्यवस्था नहीं करवाते,
आढ़ती बाजार में सही भाव नहीं लगाते,
किसान फसल घर पर नही रख पाते,
ना ही उसे वह खेत में छोड़ आते,
उखाड़ उखाड़ कर सड़कों पर उंडेलते,
खेतों से ला लाकर इधर उधर बिखेरते,।
शरीर पसीने से लथपथ हो बहते,
आंखों में आंसू निकलते रहते,
कोई इनके आंसुओं की कीमत नहीं समझते,
तब वह उदास, निराश सा होकर,
करने लगता है अपना खत्म संघर्ष,
और कर लेता है अपने को मुक्त,
अपने प्राणों का करके उत्कर्ष,
लाचार किसान का नहीं निकल पाया है,
अब तक कोई भी निष्कर्ष ।।