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13 Mar 2024 · 1 min read

“लागैं बसंत के प्रीति पिया”

लागैं बसंत के प्रीति पिया, मन हमरो प्रीति शीला होई गइलैं।
आमवां-महुआं के बौरन लागे, खेत-सीवान हरा होई गइलैं।
सरसों सिवान फुलाईन लागे, हमरो मनवा भ्रमर होई गइलैं।
बिन सजन मोहि नींद न लागैं, रतियां मोरि सवतन होई अइलैं।।

होली के रंग चढ़ें इतना, मन होली के रंग छुड़ा नहीं पाएं।
प्रीति की रीति, की रीति की प्रीति, की प्रीति की रीति भुला नहीं पाएं।
चैन गये संग रैन पिया के, रैन से चैन है चुरा नहीं पाएं।
साजन दूर बसें इतना, तन होली के रंग लगा नहीं पाएं।।

आयो बसंत मधुमास लियो, मन फिरे ह बगीयन चार हमारौ।
फूल खिलत मन हरि लेहत, कोयल कुक अनंग विहारौ।
अंतस मोहि तान सुनावै, आंसू बहे जस गागर भर जइहौ।
विरहिन बन मोहि, रोग लगईलै, साजन घर नाहि अइलै हमारौ।।

राकेश चौरसिया

Language: Hindi
1 Like · 116 Views
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