लाख संभलते संभलते भी
लाख संभलते संभलते भी
उलझते चले गए हम
ख्वाहिशें की थीं
गुलों की हमने
कांटों में उलझते गए हम
हिमांशु Kulshrestha
लाख संभलते संभलते भी
उलझते चले गए हम
ख्वाहिशें की थीं
गुलों की हमने
कांटों में उलझते गए हम
हिमांशु Kulshrestha