लाखों ख्याल आये
लाखों सवाल आये ,और हमें उलझा गये।
इश्क की राहों में ,हम भी धोखा खा गये।
मासूमियत इतनी भी अच्छी नहीं आंखों में,
मान उनको खुदा हम,अपनी जबीं झुका गये।
तोडकर शीश ए दिल,उसने हमसे था कहा,
मत खेल शोलों से ,ये कितने घर जला गये।
चांदी की दीवार, न तोड़ पाया इक गरीब।
आंहें, आंसू ,और यादें,बस उसे थमा गये।
मुद्दत बाद हकीकत से,रूबरू थे हम हुये
क्यों आखिर क्यों थे,वो बन बेवफा गये।
मजबूरियां रही थी ,उनकी राह में कुछ ऐसी
मां-बाप की इज्ज़त से,थे वो कर वफ़ा गये।
बहुत इम्तिहान होते हैं ,इस इश्क में यारो
टूटे सपने लेकर भी ,वो बस मुस्करा गये।
सुरिंदर कौर