लाक डाउन
अलका बहुत परेशान थी।कुछ समझ नहीं पा रही थी की क्या करें क्या न करें पति की नौकरी भी छुट गई थी पति एक फैक्ट्री में सुपर वाइजर थे मगर लाक डाउन और कोरोना की वजह से फेक्ट्री बंद हो गई थी और कोरोना की वजह से ही वह भी एक माह से काम पर न जा पाई थी वह भी टेलरिंग शाप में सिलाई का काम करती थी ।
दो छोटे बच्चों का भरण पोषण तो करना ही था। बड़े शहरों के खर्चे भी बहुत होते हैं बचत भी न के बराबर होती थी ।थोड़ी बहुत जमा पूंजी थी वो भी खत्म हो गई दुकान दार ने भी उधार के लिए मना कर दिया ।जो थोड़े बहुत जेवर थे वो भी राशन की भेंट चढ़ गए।
कोरोना के कारण कोई और काम भी नहीं मिला ।
इसी तरह बगैर काम के दो माह जैसे तैसे गुजर गए । मगर अब तो कुछ भी नहीं था जिससे खर्च चलता। अब क्या होगा बच्चों को क्या खिलाएगी सोच कर ही रुह कांप रही थी ।
“तभी फोन बजा “टेलरिंग शाप से सर का फोन था ।
अलका तुम एक बार शाप में आ जाओ ।
“जी सर आ जाउंगी” कहा और फोन रख दिया।
अभी अचानक क्यों बुलाया दो माह से काम पर जा न सकी थी इसलिए काम से हटा तो नहीं देंगे । अब इस मुसीबत को भी अभी आना था काफी समय से रुका लावा आंखों के रास्ते बाहर आने लगा ।
“मैं शाप जाकर आती हूं बच्चों का ध्यान रखना” शाप का सटर बंद था। पीछे दरवाजे से अंदर पहुंची तो सर अंदर बैठे थे ।
“आओ अलका मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था “सब ठीक है ना ….ये लो तुम्हारी दो माह की तनख्वाह पर मैं तो काम पर आई ही नहीं फिर …..
सरकार का आदेश है लाक डाउन में काम हो न हो सभी को तनख्वाह देना ही है ।
बहुत बहुत धन्यवाद सर आपने मेरी कितनी बड़ी समस्या दूर कर दी आंखें पुनः भर आई । मगर इस बार आंसुओं के साथ खुशी भी दिखाई दे रही थी ।
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© गौतम जैन ®