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19 Dec 2022 · 1 min read

लांघो रे मन….

जो लाँघी रेखाएँ तो होंगे महायुद्ध
कहते आए वेद पुराण गुणी प्रबुद्ध

पर जो न तोड़ती सीमाएँ
तो बहती कैसे सरिताएँ
सरहदों के पार बहती कैसे
स्वच्छंद चंचल हवाएँ
पंछी कैसे उड़ते नील गगन
उड़ते बादल कैसे संग पवन
किरणें क्या छू पाती धरा
कविता कैसे बनती बताओ ज़रा

तुम भी अपनी हद को तोड़ो
हर सीमा रेखा को मोड़ो
अनपढ़ वाली लकीर लांघो
अत्याचार की दीवार फाँदो
पार करो अपमान की परिधि
मार छलांग वो मेंड़ अनीति
उड़ चलो बन बादल परिंदा
बह निकलो ज्यूँ कविता सरिता

हो कलंकित या फिर खंडित
लांघो रे मन हर रेखा लांघो निश्चित

रेखांकन।रेखा

Language: Hindi
1 Like · 222 Views
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