लांगुरिया
लांगुरिया लोकगीत हर प्रांत में गाए जाते हैं हर मात्रा भार (छंद) के लांगुरिया पढ़ने मिले है तब हमने काफी सोच विचार करने के बाद लांगुरिया खड़ी हिंदी में लिखने का प्रयास किया है जिनसे आप लांगुरिया से भली-भांति परिचित हो सके ,| लांगुरिया लिख सकें |
भक्ति के मार्ग पर “”लांगुर”” का बड़ा महत्व है और देश के विभिन्न प्रांतों, क्षेत्रो, देवी स्थानों पर लांगुर के रूप को लेकर विभिन्नताएं देखी जा सकती है जिसमें जहाँ कुछ लोग शिव को लांगुर मानते है, कुछ भैरव को तो कोई हनुमान को यह स्थान देते है,
क्या शिव भी लांगुर है?- नवरात्रि पर दुर्गापूजन में लांगुर भोजन कराने कि परंपरा है। लोकवार्ता की पगडंडियों में डॉ॰ सत्येन्द्र लिखते है कि ” देवी के साथ लांगुर का अर्थ शिव ही है। तांत्रिक आवरण में जरायु और शिवलिंग, शिव और आदि शक्ति का समर्थन करते है |
शिव देवो में महादेव है , तव देव विष्णु व विष्णु अवतार श्रीराम , श्री कृष्ण भी लांगुर है |
लोकगीत – जेल में जन्मे लांगुरिया , करें कंस संघार
रावण को दय मार राम से लांगुरिया
इस प्रकार धीरे धीरे सभी देवता इष्ट. भक्ति रस में लांगुर बनते गए |
भगवान है , देव है , इन्हें भक्ति रस में कुछ भी कहकर आराधित कर सकते है , मीरा बाई ने तो भगवान् कृष्ण को पति मानकर आराधित किया है
अपनी बात सिद्ध करने के लिए उदाहरण देते है कि देवीपूजन में आठीयावरी में आंटे की लाठी और छ्ल्ले बनाकर कढ़ाई में तलकर चढ़ाए जाते है। ये जरायु और शिवलिंग के ही प्रतीक है। अनेक साहित्यकार बंधु भी अपने सृजन में लिखते है कि-लांगुर शिव है ,
तब हम कह सकते है कि इसी आधार पर लांगुर में इया प्रत्यय जोड़कर लांगुरिया शब्द का प्रादुर्भाव हुआ व नायक नायिका (शिव और आदि शक्ति गौरी ) एक दूसरे के लांगुरिया है , इसी आधार पर सामाजिक परिवेश में पति और पत्नी , प्रेमी और प्रेमिका परस्पर एक दूसरे के लांगुरिया है
अब दूसरा पक्ष भी देखते है , भैरव और हनुमान जी को लांगुर मानने का ,वह बालक को लांगुर कहते है | भैरवनाथ देवी मां के व सीता मां के हनुमान जी आज्ञाकारी लांगुर है ,तब सामाजिक परिवेश में पुत्र भी लांगुर है
अनेक देवी गीत में लांगुर के रूप में भैरव का गुणगान होने से भैरव देवी के लांगुर होने व जनसामान्य के देव के रूप में विशेष स्थान रखते है।
इस प्रकार यथा गीत अनुसार लांगुर , देवता है , पुत्र भी है , और परस्पर प्रेमी प्रेमिका है , यानी किसी से प्रेम श्रद्धा ही लांगुर है व जिससे जैसा अनुराग है वह उसका लांगुर है
“”राम की बूटी लांगुरिया ” मेरी मोहिनी मैया तोपे चवर ढुरे”” “मेरी मैया केला चल रे लांगुरिया, तुझसे विनती करता लांगुरिया। “केला मैया के भुवन में घुटुअन खेले लांगुरिया’
“नौने मढ़ के है दरबारे दर्शन करले लांगुरिया”
“झूलो झूलो री भवानी माई लंगुरिया
जैसे भावपूर्ण गायन मन को तरंगित कर देते |इस कला के रुझान वश इसको सर्व व्यापी हिंदी छंदो में निबद्ध किया जा रहा है
इसी तरह सामाजिक परिवेश में ना़यक नायिका के लांगुरिया है ,
जैसे – मेरी भोली भाली लांगुरिया ,
मेरा भोला भाला लांगुरिया
अब द्विअर्थी अर्थी लांगुरिया भी नजर आने लगे है , व्यावसायिक लोक गायक भीड़ जुटाने इनका अधिक प्रयोग करते है
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लांगुरिया गीतों में टेक, और उड़ान गायक अपने स्वर अलाप से रखते है पर अंतरा किसी न किसी छंद से ही गाते है
आधार छंद ~ सरसी में लांगुरिया (मात्रानुशासन 16 – 11 मात्रा भार में
(टेक , उड़ान कितनी भी मात्रा की रख सकते है
टेक.- लांगुरिया का गान
उड़ान- सब करते सम्मान – -२(कई बार अलाप अनुसार )
सरसी छंद – में अंतरा
पर्वत ऊपर माँ का मंदिर, करें सभी गुणगान |
ध्वजा वहाँ लहराती प्यारी , धरते माँ का घ्यान ||
नाच रहा लागुरिया प्यारा, गाता माँ के गीत. |
ज़य मैया के जयकारे से , सबको मिलती जीत. ||
पूरक – मैया ! सबकी रखती आन
उड़ान ~ सब करते सम्मान ~2
सरसी छंद में अंतरा
माता सुंदर वहाँ बिराजी , सबका करती ख्याल |
जो भी दर्शन माँ का करता , मिटता सभी मलाल ||
रोग शोक सब मिट जाते है , महिमा अपरम्पार.|
देवी मैया के लांगुरिया , माता रहे निहार. ||
पूरक ~ माता ! सबकी सुने पुकार
उड़ान ~ सजा हुआ. दरबार ~ 2 ( कई बार )
सरसी छंद में अंतरा
सास ननद है संग जिठानी , पूजन करें अपार |
बालम मेरा बन लांगुरिया , है माता दरबार ||
नाच रहा लागुरिया बालम , करता जय-जयगान |
मै़या भी मुस्काती जाती , देती उस. पर ध्यान ||
पूरक ~ मैया ! बड़ी निराली शान
उड़ान ~ सब करते है सम्मान ~2 ( कई बार )
सरसी छंद में अंतरा
नवराते के जगराते है , मेला भारी भीड़ |
लांगुरिया जी हमे दिला दो , रहने सुंदर नीड़ ||
सुबह शाम माता को पूजों , लेकर पूजा थाल |
लागुरिया की मैं लागुरिया , होती आज निहाल ||
पूरक ~ मैया ! लागुरिया का ध्यान
उड़ान ~ सब करते सम्मान ~2
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आप सात आठ अंंतरा तक लिख सकते है
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अब दूसरा सरसी छंद 16-11 में लांगुरिया
टेक – बहुत बुरा है हाल |
उडान – बिगड़ी मेरी चाल ||
अंतरा ( सरसी छंद )
किसे सुनाऊ अब लांगुरिया , बालम धोखे बाज |
सौतन जब से घर में आई , बिगड़़ गए सब काज ||
पूरक – सौतन ! बजा रही है गाल
इड़ान – बहुत बुरा है हाल.
अंतरा ( सरसी छंद विधानानुसार )
पंच जुडे है अब लांगुरिया , आवें मुझको लाज |़
आप सम्हारो आकर अब तो , जानो तुम सब राज ||
पूरक ~बिगड़ी घर की ताल
पुन: टेक – -बहुत बुरा है हाल
इसी तरह से गीत आगे बढ़ा सकते है
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तीसरा गीत
सरसी छंदाधारित , एक सामाजिक परिवेश कथानक का लांगुरिया गीत ~.
टेक- सखी री ! लांगुरिया हैरान ~ सखी री ! लांगुरिया हैरान
उड़ान – मुझ पर पूरा ध्यान ~ सखी री ! मुझ पर पूरा ध्यान (कई बार अलाप भरकर)
अंगना हँसती खड़ी जिठानी , तिरछी कर मुस्कान |
लाया है लांगुरिया मेरा , आज केवड़ा पान ||
पास बुलाता मुझको धीरे , नचा रहा है नैन |
पान बहाना करके कहता , मन. मेरा बैचैन ||
पूरक ~ लांगुरिया नादान ~ सखी री ! लांगुरिया नादान
उड़ान ~ मुझ पर पूरा ध्यान ~ सखी री मुझ पर पूरा ध्यान
संकट पर संकट आता है , आ. धमकी है नंद |
पान देखकर आंख दबाए , हँसी बिखेरे मंद ||
लांगुरिया है भोला मेरा , इन सबसे अंजान |
नंद जिठानी दोनों मिलकर , रही निशाना तान ||
पूरक ~आफत में है जान ~ सखी री ~ आफत में है जान
उड़ान ~ मुझ पर पूरा ध्यान ! सखी री ~ मुझ पर पूरा ध्यान
सासू माँ भी बोल उठी है , बहूू रसोड़ा खोल |
ससुरा तेरा भूखा बैठा , सुन ले उनके बोल ||
बूड़े बाबा के सँग देवर , बैठा पाँव. पसार |
कहता भौजी पहले मेरी , थाली जरा निहार ||
पूरक ~ मेरे ! लुटे पिटे अरमान ~ सखी री ~ लुटे पिटे अरमान
उड़ान ~ भटक गया सब ध्यान ~ सखी री ! सब कुछ चौपट मान ||
सुभाष सिंघई
विशेष – यह हमारा अध्ययन अन्वेषण है , जरुरी नहीं कि सब सही हो, यदि किसी का परामर्श परिमार्जन हो व प्रश्न हो तो सहर्ष स्वागत है , मेरा आशय लांगुरिया को खड़ी हिंदी में लिखने का आशय भर है , और लांगुरिया किसी भी छंद में , टेक उड़ान , पूरक का प्रयोग करते हुए लिखे जा सकते है , जिस तरह पद काव्य लिखे जा सकते है और. जिसको आप सभी ने सहर्ष स्वीकार किया है