लहज़ा।
लहज़ा है उसका कड़ुवा पर बोलता है हमेशा वह सच बात।
गलत ना समझना तुम उसको वह दिल में रखता नही कोई गुबार।।1।।
साज़िशें तो बनती रहती है बस उसको बदनाम करने की।
इसलिए वह रुकता नही किसी अजनबी के घर पर रात।।2।।
अब कोई और आ गया है उसकी जिंदगी में बनके बहार।
हर चीज की है इक मुद्दत आखिर वह करता तेरा कब तक इंतज़ार।।3।।
वह लेता नही अब अदब में किसी को अपने आये उरूज पर।
गर्दिश के वक़्त सबने ही छोड़ दिया था उसका साथ।।4।।
शायद कमर को भी होने लगी है जलन उसके चेहरे के नूर से
तभी तो आती नहीं अब चांदनी उसके घर की छत पर हर रात।।5।।
वह जाता नही कभी शहर के नवाबों के पास अपने काम से।
मांगने की खातिर दुनियाँ में उसके लिए बस है इक खुदा की जात।।6।।
वह ज्यादा बोलता नही किसी से कही हो ना जाये कोई बात।
छिपा रखे है उसने अपने सीने में हवेली के कई गहरे राज।।7।।
चाहता तो रकीबों को बर्बाद कर देता वह इस ओहदे को पाकर।
पर उसने दिखाई शराफत ना निकाली दुश्मनी किसी के साथ।।8।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ