लहर
रात गुजर रही मेरे साथ
चहुँओर दिखा राख – सी चित्र
मानो दे रहा कोई संदेश
प्रत्याशा है जैसे झींगुर राग घट के
दिशा – दिशा तिरती पवनें
मन्द – मन्द या तेज उठान वेग
सुख – दुःख की क्या खींचती व्यथाएँ ?
बढ़ – बढ़ लौटती आँगन की जैसी छाया !
ऊपर शशि केतन ले किंचित् प्रभा
कहाँ दे रही मुख के मुस्कान ?
माहुर भव या मनु कौतुक दंभ भरा
कहर उठा चितवन , है यह लहर किसका ?
यह अवसाद है पुराना झर रही जैसी
आँशू गिर – गिर कर बह चली सरित्
इस खल महफ़िल के बैठी चिंगारी
कहाँ खींचती किसी की लकीर ?
सन्ध्या नूपुर – सी झिन – झिन करती
बढ़ असित मन्द – मन्द कौमुदी नीहार
क्षणभंगुर यह पुलिन है ख़ग के कलरव
गति है वेग में त्वरित छवि विवस्वान् के