लहरों को हटते देखा है
लहरों को हटते देखा है
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लहरों को टलते देखा है
संघर्ष में भिड़ते देखा है
शेखी जो बड़ी जताते थे
विपदा में टलते देखा है
शान्ति के जो राजदूत हैं
लोगों से लड़ते देखा है
औरों को जो उकसाते हैं
मौके पर हटते देखा है
जीतों के जो सिकंदर थे
जीवन में हरते देखा है
कमजोर समझे जाते हैं
तूफां से भिड़ते देखा हैं
चालों के जो बाजीगर हैं
चालों में फंसते देखा है
तैराक समझने वालो को
पानी में डूबते देखा है
बाजियाँ पलटने वालों को
शतरंज में हरते देखा है
अहंकारी जो कहलाते थे
अहंकार में मरते देखा हैं
ठोकर जो मारते रहते हैं
खुद ठोकर खाते देखा है
सुखविंद्र सच्चाई लिखता है
झूठों को लिखते देखा है
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)