लहजा वो शराफ़त का अपनाए हुए हैं
देखा है हसीं ख्वाब वो घर आए हुए हैं
हम हैं कि तसव्वुर मे ही शर्माए हुए हैं
करेंगे कैसे कोई गुफ्तगू सनम से हम
के जमीं पर वो नजरें टिकाये हुए हैं
आएगा किसी रोज़ पलट कर वो यही पर
हम दिल को कई रोज़ से बहलाए हुए हैं
सीने को दिया करती है हर वक्त ये ठंडक
ए इश्क तेरी आग जो भड़काए हुए है
जो फ़िक्र मे रहते हैं मिटा दें मेरी हस्ती
लहजा वो शराफत का भी अपनाए हुए हैं
लगता है कि बादल से कोई शर्त लगी है
वो सुब्ह से ज़ुल्फो को जो लहराए हुए हैं
ए जाने जहाँ आपके ये महके खयालात
खुशबू की तरह ज़िन्दगी महकाए हुए हैं
ये मेरी दुआ है हो उन्हे फूल मयस्सर
कांटे जो मेरी राह मे बिखराए हुए हैं