लहजा बता देगा
है गहरा कितना ये रिश्ता सुनो लहज़ा बता देगा
मुझे तेरा बता देगा तुझे मेरा बता देगा
जमीं पर मिल्कियत का अपनी दावा करने वाले सुन
लिखा है नाम जिसके जो भी ये शजरा बता देगा
दिखावा खूब होता है मिलेगा खूब अपनापन
है सच्चा कौन, झूठा कौन ये चेहरा बता देगा
ग़ज़ल में कहते हैं किसको ज़माने से छिपाकर हम
पढ़ोगे दिल से जब तुम तो हर इक मिसरा बता देगा
कभी सोचो कभी समझो कभी देखो कभी पूछो
कमी खुद की नहीं दिखती तो आईना बता देगा
न मकसद है न चाहत है न जीने का कोई अरमाँ
मगर यह वक्त जीने का कोई जरिया बता देगा
नहीं मुमकिन हो पहले सी मुहब्बत भी मिले ‘सागर’
निकलना है कहाँ अब रास्ता दरिया बता देगा