लव लेटर
लव लेटर!!
रात के इस पहर भी नींद आंखों से कोसो दूर है, कुछ फ़ांस है जो निकलती नही है। कहना बहुत कुछ चाहते है लेकिन कह नही पाते, क्योकि मुझे तुमको सुनना बहुत पसंद आता है। तुम्हारी आवाज का सम्मोहन वैसा ही है जैसे मंदिर में बजती घण्टिया। कभी कभी तो मन होता है ऐसे ही सो जाए तुम्हारी सांसो के उतार चढ़ाव की आवाजें सुनते हुए, शायद चैन की नींद नसीब हो जाये।
लेकिन यहाँ तो अलग ही फ़िल्म चल रही एक एक करके तुम्हारी कही बाते याद आती है और करवटें बदलते ही पूरी रात जाती है क्योकि बाकी तुम क्या कहते हो वह तो पता नही लेकिन यह तो तुम सच ही कहते हो कि जब भी तुम आते हो तो बेहद और बेशुमार ही आते हो।
बहरहाल, तुम्हे बताते चले कि जितने उजड़े तुम उतने बर्बाद हम .. हमें कोई शौक नही अब आबादी का हम तो अपने जन्म के छठवें दिन ही अपनी किस्मत लिखवा आये थे। हम को तो अब इसी में मजा आ रहा है वैसे ही जैसे तुमको दोजख की आग से प्यार हो गया है, ठीक वैसे ही। याद रखना बहुत कुछ हमारे बीच साझा है उसी तरह ये बर्बादी के किस्से भी साझे है।
अब तो विकल्प भी सीमित है, या तो फिर से उठेंगे, या गिरेंगे तो फिर घाट ही लगेंगे। बस तुम्हे यह समझना होगा कि सूखे पेड़ से भी कोपलें फुट आती है अगर उनके सही से देख-भाल मिले, जब जान ही गए हो जड़ो को दीमक लग गया है तो दवा करो, कुछ इच्छाशक्ति दिखाओगे तभी तो पेड़ को नया जीवन मिलेगा। कब तक बहाने बनाते रहोगे, पूर्वाग्रह में जीते रहोगे।
फिर पंछियों से पेड़ का वजूद कब से होने लगा? तुम्हारा स्वतंत्र वजूद है तुम सक्षम हो, फिर से उठकर खड़े हो जाओ, कंधे खोजने से अच्छा अपनी सहभागिता सुनिश्चित करो।
फिर अगर अपने लिए मन नही है तो उसके लिये प्रयास करो जिसकी कल्पना में तुम घुटने तक भीगे वस्त्रों में पवित्र गंगा जी मे खड़ी आचमन करती मूरत सी दिखती हो.. वह उतने भी निष्ठुर नही जितना तुमने समझ लिया है। जब हम चाहत रखते है तो रास्ते भी निकलते हैं, भोलेनाथ का नाम लो मन से प्रयास करो, देखो शायद वह मान ही जाए.. और गर नही भी मानेगे तो अब इससे ज्यादा क्या ही बर्बाद होंगे जितने की अब है।
वैसे तो हम हर परीक्षा देने को तैयार बैठे है लेकिन यह याद रखो, बिना बंधन बिना परीक्षा राधा ने प्रेम किया कृष्ण से तो वह प्रेम की अमर कहानी बन गयी, जबकि राम की परीक्षाओं ने मां सीता को जीवन भर तबाह ही किया, जब सब कुछ अच्छा होने लगा तो उन्ही परीक्षाओं ने जानकी माता को दारुण दुख दिया। प्रेम हो अगर किसी को तो वैसा ही हो जैसे मीरा को कृष्ण से था, राधा को कृष्ण से था।
– कभी बनती कभी बिगड़ती कहानी का अंश