‘लव यू गौरव’
गार्गी ने कनखियों से गौरव को देखा…”हूँ ……अभी भी कम हीरो नहीं लगते हैं ये” सोचकर मन ही मन मुस्करायी वो ….
फिर धीरे से चिकोटी काट ली गौरव के हाथ पर..
‘अरे….’चौंक कर गौरव उसकी तरफ देखने लगा ….”अब ये हनीमून वाली यादें मुझे भी देंगे आप ?” कहते हुए गार्गी ने उसकी बाहों पर पड़ी एक साड़ी की तरफ इशारा किया …..
“अरे मैं तो भूल ही गया था ….”कहते-कहते गौरव का चेहरा गुलाबी हो आया …
गार्गी भी लजा गई ….
“तुम भी ना…” कहकर गार्गी अंदर चली आई और सोचने लगी कि इन तीन महीनों ने उसके जीवन को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया ….रिटायरमेंट के बाद दोनो पति-पत्नी सैर सपाटे को निकल गये थे….कभी शिमला…कभी देहरादून …. घूमते-घूमते दो वर्ष कब बीत गये पता ही नहीं चला ….गार्गी और गौरव ऐसे युगल थे जिनकी चर्चा लखनऊ के अधिकांश पुराने लोगों के बीच में होती रहती थी ….कारण था उन दोनों की सेवा भावना की प्रवृत्ति, वृद्धजनों के लिए सदैव समर्पण की भावना.. एक दूसरे से स्नेह से बात करना। सहृदयता से भरपूर दोनो का जीवन बहुत मोहक रहा था …गार्गी जहाँ सरकारी टीचर के पद से रिटायर हुई थी, वहीं गौरव बैंक से सेवानिवृत्त हुआ था ….दो प्यारी बेटियाँ अपने-अपने परिवारों में मशगूल थीं ….कि अचानक उस दिन से जिंदगी ही बदल गई…
गौरव हमेशा ही बागवानी में लगा रहता था ….रिटायरमेंट के बाद भी उसने अपने सारे शौक कायम रखे थे .. उस दिन अचानक उसके पैरों पर हथौड़ा गिर गया… खून…चोट..भागमभाग ..दवा शुरू हो गई.. ड्रेसिंग होती रही..पर जख़्म ठीक होने के बजाय इतना बढ़ गया कि पैर काटने की नौबत आ गई । एक छोटी सी लापरवाही …टिटनेस का इंजेक्शन नहीं लगवा पाई वो उनको ….याद ही नहीं रहा ..और फिर परिवार पर वज्रपात हुआ ….गौरव का बायां पैर काटकर जान बचाई गई …।
क्या से क्या हो गया … सोचते-सोचते गार्गी थरथरा पड़ी …उसके दिमाग में दो महीने का पुराना समय फिर घूमने लगा ….
छुप-छुप कर गौरव दिव्यांगो की प्रेरणादायी बातें पढ़ने लगा था …अक्सर चेहरा हाथों से ढाॅंपें खो सा जाता …परिवारजन ढाॅंढस बॅंधा कर चले गये … गार्गी ने महसूस किया था कि उससे भी अपने मन की बातें छुपाने लगा था गौरव …एक स्टिक के सहारे वो चलने का प्रयास करता ….पर ..हार जाता … गार्गी के काॅंधे पर सर रखकर बैठे-बैठे हिचकियाँ ले लेकर रो लेता ….गार्गी भी स्तब्ध थी ….कैसे सामंजस्य बैठाए वो …बस यही सोचती रहती ….धीरे धीरे व्हील चेयर पर बैठाकर गौरव को लाॅन तक ले जाने लगी थी.. उसका मन बाँटने का प्रयास करती थी..पर गौरव! वो तो जैसे पत्थर का हो गया था …शून्य में देखता रहता था …फिर गार्गी को एक विचार सूझा …उसने चुपके-चुपके बाहर वाले कमरे को एक लाइब्रेरी का रूप देना प्रारंभ किया …गौरव के पास लगभग पाॅंच-छह हजार पुस्तकें थी, वो पढ़ने का इतना शौकीन था कि कई पुस्तकों के प्रसिद्ध वाक्य, पसंदीदा कवियों की रचनाएं उसको रटी थीं …उसने आर्किटेक्ट की सहायता से एक आधुनिक लाइब्रेरी बना ली। गौरव ने तो गैलरी से आना-जाना शुरू कर दिया था …व्हील चेयर के साथ …तो उसने उसको कुछ भी नहीं बताया …फिर गौरव को 64वें जन्मदिन पर उसके बहुत पसंदीदा कविगणों को, साहित्यकारों को बुलाकर अपनी लाइब्रेरी का उद्घघाटन करवाया …गौरव चकित हो गया …हल्की सी मुस्कराहट के साथ उसने जीवन की नई शुरूआत करी। मंसूब साहब…ज्योति दीदी जैसे बीसियों लोगों से मिलकर उसके मनोभाव पुनः वापस लौटने लगे …किताबों की नई दुनिया ने उसके जीवन को दुबारा उत्साह से भर दिया था …आसपास के बच्चे आने लगे …राय मशविरा करते-करते गौरव भूल ही जाता था कि एक पैर की कमी है उसके जीवन में..
गार्गी ने अपनी आँखे पोछीं ..और आज सुबह की घटना पर मुस्करा उठी …जब उसने देखा था कि गौरव.. सुहागरात के समय पहनी हुई उसकी साड़ी को अपने हाथों में लेकर बैठा था..गार्गी को देखकर इतना अच्छा लगा कि वो गौरव के गले लगकर कह पड़ी थी “लव यू गौरव……”
समाप्त
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ