लम्बे रदीफ़ की ग़ज़ल (कज़ा मेरी अगर जो हो)
(सबसे लम्बे रदीफ़ की ग़ज़ल)
काफ़िया=आ
रदीफ़= मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर
1222×4
खता मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर,
सजा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना,
वफ़ा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
नशा ये देश-भक्ति का, रखे चौड़ी सदा छाती,
अना मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
रहे चोटी खुली मेरी, वतन में भूख है जब तक,
शिखा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
गरीबों के सदा हक़ में, उठा आवाज़ जीता हूँ,
सदा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
रखूँ जिंदा शहीदों को, निभा किरदार मैं उनका,
अदा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
मेरी मर्जी तो ये केवल, बढ़े ये देश आगे ही,
रज़ा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
रहे रोशन सदा सब से, वतन का नाम हे भगवन,
दुआ मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
चढ़ातें सीस माटी को, ‘नमन’ वे सब अमर होते,
कज़ा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया।