लब तुम्हारे मौन हैं
उठ रहा तूफ़ान दिल में लब तुम्हारे मौन हैं
कह रही खामोशियाँ क्यों शोर सारे मौन हैं
आज से पहले न बातें खत्म होती थी कभी
बातें करते अब तुम्हारे और हमारे मौन हैं
देश पर कुर्बान हो आये तिरंगा ओढ़ कर
रो रही हर आंख लेकिन लाल धारे मौन हैं
आपदा में घिर जिन्होंने खो दिए अपने सभी
वो अकेले अब खड़े हो बेसहारे मौन हैं
जख्म रिसते ही रहे मरहम मिला हमको नहीं
दर्द भी बस आँसुओं के ही सहारे मौन हैं
गम भरे बादल घिरे हैं ‘अर्चना’ अब क्या करें
झिलमिलाना भूल मन के चाँद तारे मौन हैं
डॉ अर्चना गुप्ता
13-08-2015