लबों पे टूटे हुए छंद…
आंखों में आंसू हों , लबों पे टूटे हुए छंद।
कैसे मुस्काएं भला , होठों पे हो पैबंद ।।
मौसम में मादकता न, कहीं सावनी बयार ।
शामवती पवनों की, न अनुपम झंकार ।।
मल्हार रागों में कहीं, न हो लय की गंध ।।।
कैसे मुस्काएं भला…..
यादों का कफन ओढ़े, जिदंगी बनी हो लाश ।
सुलगता सा सावन हो, जलता सा मधुमास ।।
सिंधु की बलखाती, चाल होवे जब मंद।।।
कैसे मुस्काएं भला ……….
सहानुभूति सांसों की, बेचैन पीड़ा दे।
सब बेसुध हों अपने में, कौन किसे बीड़ा दे ।।
नजर जमीं वहां, जहां , गुलाबी गुलकंद।
कैसे मुस्काएं भला ……….
नेकी भी रह न गई, चंद रोज की मेहमान ।
कोख में सुरक्षित नहीं, कन्या नादान ।।
कुचली गई हो संस्कृति, जब दरके हों संबंध ।।
कैसे मुस्काएं भला ……….
गली-गली मातम हो, जगह-जगह हो भ्रष्टाचार ।
चाचा-भतीजा मिलकर, बहांए उल्टी धार ।।
‘तमन्ना’ तसल्ली बिकी हो, सिर्फ फैली हो दुर्गंध ।।।
कैसे मुस्काएं भला ………
आंखों में आंसू हों , लबों पे टूटे हुए छंद।
कैसे मुस्काएं भला , होठों पे हो पैबंद ।।