लबों की प्यास में आ
तू कोई ख़ुशबू सा बनकर मेरे हर एहसास में आ
तुझे जो भी हो पसन्द उस लिबास में आ
मैंने तेरे लिए दिल में दीवान ए ख़ास बना रक्खा है
ऐ मेरे सनम आ दीवान ए ख़ास में आ
मुद्दतों से बेपनाह मैं बस पिघलना चाहता हूँ
तू आ जा औऱ क़रीब आ मेरे पास में आ
मैं मरना चाहता हूँ,तुझें आग़ोश में भरना चाहता हूँ
तू भी भर ले मुझें आग़ोश में मेरी साँस में आ
लब कितनें सूखे सूखे हैं ,हलक भी सूखा सूखा है
आ लब से लब टकरा तू लबों की प्यास में आ
ऐ जीती जागती मैक़दे में शराब सी तुझें पी जाऊँ
आ झूमती बोतल से निकलकर गिलास में आ
कब तक तड़पायेगी मेरी जाँ ख़ुद से दूर रक्खकर
मैं परेशां हुआ,तू भी तो आ कभी रास में आ
~अजय “अग्यार