लफ्ज़ों की गहराई
लफ्ज़ों की गहराई में जाना कभी..
लाखों उम्मीदें और भावनाएँ मिलेंगी मरी…
सोच से परे होंगे ख्याल…और सिर्फ
अंदर तक होगी नमी ही नमी …
यूंही नहीं निकल जाती वेदना शब्दों से…
जाने कितनी आशाएँ सम्भावनाएँ कुचली और रौंदी गई होंगी…
सोचकर ढालना पन्ने पर हर्फ एक एक
उफ्फ कितनी बेबसी तड़प अश्कों में मेरे बही होंगी
यूँ ही तो नहीं बिखर जाती टूट कर हसरतें…
कोई तो रूठ कर कमी
फलक से जमीं पर औंधी गिरी होगी
सम्हल तो जाती है उदासी वक्त के मरहम से… पर,दिल के छालों पर, कोई तो निशानी गड़ी मिलती होगी।
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