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7 Nov 2022 · 3 min read

लत – कहानी

राजेश अपने माता – पिता की अकेली संतान थी | चाहर जी के परिवार में शादी के करीब नौ साल बाद एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी | इसलिए भी वह अपने माता – पिता का लाड़ला था | बचपन में जब रोने लगता तो माता – पिता उसे चुप कराने के लिए हाथ में मोबाइल दे दिया करते थे | और उस मोबाइल पर कोई वीडियो चला देते थे जिसे देखकर राजेश चुप हो जाता था और मोबाइल से खेलने लगता था | राजेश को बचपन से ही सब राजू कहकर पुकारते थे | राजू को धीरे – धीरे मोबाइल की आदत पड़ गयी | जब भी राजू को मोबाइल न मिलता तो वह खाना – पीना छोड़ देता और तरह – तरह की बहाने बाजी करने लगता | उसके माता – पिता न चाहकर भी उसकी मांगें पूरी कर देते | जैसे – जैसे वह बड़ा होता गया उसके दोस्त उसे मोबाइल पर गेम खेलने के लिए उत्साहित करने लगे | राजू अब चौदह साल का हो चुका था | मोबाइल पर गेम खेलना उसे अच्छा लगने लगा | इसी के चलते अब उसे मोबाइल पर गेम खेलने की लत गयी |
एक दिन राजू घर का सामान लेने के लिए बाज़ार जा रहा था | हाथ में मोबाइल और उस पर गेम | चलते – चलते उसे ध्यान न रहा और सामने से गुजर रही एक आंटी से टकरा गया | उसने राजू को दो थप्पड़ जड़ दिए और रास्ते में चलते हुए मोबाइल न चलाने की नसीहत भी दे दी | यहाँ तो मामला दो थप्पड़ पर ही सिमट गया | आगे क्या हुआ देखिये |
एक दिन राजू घर से छुपाकर अपने साथ मोबाइल लेकर स्कूल चला गया | घर में सब मोबाइल ढूंढते रहे | स्कूल से वापस आते समय रोज की तरह राजू मोबाइल पर गेम खेलते हुए घर आ रहा था | तभी रास्ते में खड़ी एक मोटर साइकिल से राजू टकरा गया और अपना घुटना फुटवा बैठा | घर आते ही माता – पिता की डांट – फटकार और साथ ही हिदायतों का अम्बार | पर राजू का इन सब बातों का असर कहाँ | आगे की घटना इन सब घटनाओं से सबसे ज्यादा डरावनी थी |
एक दिन राजू ने अपने माता – पिता से दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाने की इजाजत मांगी | पहले तो राजू के माता – पिता ने मना किया पर राजू जब ज्यादा जिद करने लगा तो उन्हें हामी भरनी पड़ी | पिकनिक स्थल घर से ज्यादा दूर नहीं था | इसलिए उन सभी से पैदल ही जाने का निर्णय लिया | रास्ते में राजू के हाथ में मोबाइल और कानों में ईयरफोन के साथ पिकनिक का शुभारंभ हो गया | पिकनिक पर रास्ते में राजू के दोस्तों ने उसे मना किया कि यार राजू आज तो मोबाइल छोड़ और पिकनिक का मजा ले | पर राजू तो अपनी धुन का पक्का था उस पर किसी की बातों का कोई असर न हुआ | रास्ते में सभो दोस्तों को रेलवे लाइन के साथ – साथ कुछ दूरी पार कर दूसरी ओर जाना था | रेलवे लाइन के साथ – साथ चलते – चलते राजू को पता ही नहीं चला कि वह रेलवे लाइन के बीच में चल रहा है | इसी बीच एक ट्रेन वहां से आ गुजरी | राजू के दोस्तों ने ट्रेन की आवाज सुनी और वे सभी भागकर पटरी से दूर चले गए | किन्तु राजू के कानों में ईयरफोन और मोबाइल पर गेम के चलते उसे कुछ भी पता नहीं चला | जब तक वह कुछ समझ पाता उससे पहले ही ट्रेन वह अपनी एक टांग गँवा चुका था | वह बेहोश हो गया था | उसके सारे दोस्त भागकर उसके घर गए और उसके माता – पिता को सारी बात बता दी | आनन – फानन में राजू को अस्पताल ले जाया गया |
करीब एक माह बाद राजू ठीक हुआ | माता – पिता को एक माह तक लगातार परेशान देख और अपनी सेवा करते देख राजू का ह्रदय परिवर्तन हो गया | उसे अपनी गलतियों का एहसास हो चुका था | मोबाइल पर गेम खेलने की लत ने राजू को जो घाव दिए वो बहुत ही पीड़ादायक थे | उसे एहसास हो गया कि आगे की जिन्दगी अब इतनी आसान होने वाली नहीं है | राजू के माता – पिता को इस बात से संतोष करना पड़ा कि उनका बेटा जीवित तो है | और साथ ही राजू की बदली सोच भी उनके लिए काफी थी |

7 Likes · 4 Comments · 324 Views
Books from अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
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