लता अब न पैदा होगी धरा पर
लता अब न पैदा होगी धरा पर
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लता थी लता सी फैली धरा पर,
सदा मजलिसें महकाई धरा पर।
ग़ज़ल-गीत-नग़मे गाये बहुत से,
सुरों की बिखेरी शैली धरा पर।
न मंगेशकर सा सानी हुआ है,
मधुर सी बिखेरी वाणी धरा पर।
सुरों का खज़ाना मधु कंठ पाया,
वर्षा सुरमयी बरसा दी धरा पर।
तराने सुनो मनसीरत सुनाता,
लता अब न पैदा होगी धरा पर।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)