लड्डू जैसे गालों वाली
मतभेदों के बीच हमारे , जागा है इक भाव प्रिये !
इन आँखों में दिखता मुझको , इक प्यारा ठहराव प्रिये !!
और तुम्हारे गानों में है , कुछ ऐसा आभास प्रिये !
जैसे कृष्ण की मुरलीवाला , मथुरा सा एहसास प्रिये !!
‘ लड्डू जैसे गालों वाली ‘ ने , अधरों में भंग भरे हैं !
तिरछी मुस्कानों के पीछे , बोलो किसके रंग चढ़े हैं ??
– शशांक तिवारी