लड़के और लड़कियों मे भेद-भाव क्यों
समाज में लड़कियों के प्रति
हो रहे दोहरे चरित्र को देखकर,
मेरे मन में यह ख्याल बार-बार आता है!
क्यों समाज में आज भी लड़के – लड़कियों के
मामले में अलग – अलग सोच रखा जाता है!
क्यों लड़के के जन्म पर खुशियाँ मनाया जाता है
और लड़की के जन्म पर घर में मातम सा छा जाता है!
आज भी समाज में उन्हें
क्यों बोझ समझा जाता है!
क्यों नहीं लड़कियों को समाज में,
लड़के के तरह पाला जाता है!
क्यों नहीं लड़कियों को लड़के की तरह
आजादी से जीने दिया जाता है!
हम कहते तो है की हम
लड़के और लड़कियों में भेद-भाव नही करते है।
पर क्या हम अपनी लड़कियों को
लड़के की तरह सारे अधिकार दे पाते है!
आज भी समाज में लड़के और लड़कियों लिए
दोहरे नियम आय दिन आस – पास
फिर क्यों दिख जाता हैं।
क्यों समाज का दोहरा चरित्र
लड़कियों के लिए बार-बार नजर आता है।
हम लड़कियाँ तो दो घरों की मर्यादा
को समेंट कर चलती है।
कभी ठेस न लगे किसी को दिल को,
हर दिन हर समय यह ख्याल रखती है।
लड़के से कहीं ज्यादा बेहतर
घर और बाहर सम्भालती है।
फिर भी मर्यादा में रहने का पाठ
हमें ही क्यों पढाया जाता है।
बात-बात क्यों सिर्फ हमें ही समझाया जाता है।
क्यों हमारे कपड़े रंग -रूप भेष-भुषा देखकर
समाज के नजरों में हमें नापा – तौला जाता है।
क्यों हमे समाज के इस संकीर्ण
सोच के साथ हर रोज जीना पड़ता है।
तुम लड़की हो अपने दायरे मे रहों
हर दिन , हर पल ,हर क्षण एहसास कराया जाता है।
आज भी समाज में अपने अधिकार के लिए
हमें क्यों हर दिन, हर पल, हर क्षण
लड़ना पड़ता है।
यह समाज खुशी-खुशी हमें
क्यों नही अपना हक देता है।
क्यों नही हमें अपनाता है।
कहने के लिए यह समाज
आधुनिक और विचारधारा से आजाद है।
पर क्या यह आजादी सही मायने मे
लड़कियों को मिल पाई है।
कहां आज भी यह समाज लड़कियों को लेकर
अपनी कुंठित प्रश्न से बाहर निकल पाया है।
हमारे समाज मे पढीं लिखी लड़कियों को भी इस प्रश्न से
कई बार गुजरना पड़ता है
और आम लड़कियाँ तो जीवन भर इसी प्रश्न मे घिरी रह जाती है।
इससे अच्छा तो हमारा अतीत था।
हम लड़कियों को पुरा-पुरा सम्मान मिलता था।
माँ ,पत्नी, बहन और बेटी के रूप में
आदर प्रेम और इज्जत तो मिलता था।
हमारा अतीत हमारा धर्म बतता है की लड़कियों को
उस समय काफी सम्मान मिलता था जैसे
अपना वर चुनने अधिकार
जिसमें स्वयंवर के माध्यम से लड़कियाँ अपनी मन के इच्छा अनुसार अपना वर ढुँढ सकती थी।
राज-पाठ का ज्ञान अर्थात पढने का ज्ञान।
युद्ध लड़कियों और नारियों का योगदान समय-समय पर पुरा-पुरा रहता था।
पर आज जब यही हक हम नए तरीके से मांगते है,
अपने जीने के लिए खुला आसमान मांगते है
तो क्यों हमारे इस मांग को बगावत का नाम दिया जाता है।
हम कैसे समझाएं इस समाज के पुरूष वर्ग को
की हम तुम्हारा कुछ भी अधिकार छिन्ना नही चाहते है।
बल्कि हम तुम्हारे साथ मिलकर
अपने लिए बंदिशो से रहित जमीं और खुला आसमान बनना चाहते है।
जिसमें बिना घुटन के हम दोनों जी सकें।
फिर भी समाज को लड़कियों को
बराबर का हक देने में परेशानी क्यों ?
~ अनामिका