“लड़की हुई है”
“लड़की हुई है”
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मेरे एक घनिष्ट मित्र रवि जो एक निजी कंपनी में काम करता था। रवि की आय ज्यादा नही थी, किसी प्रकार अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाता था,घर पर बूढ़े मां बाप बीमार ही रहते थे। चलने फिरने की स्थिति में नही थे। बेचारे को एक पुत्री पहले से थी, जिसकी उम्र लगभग 4 साल थी। फिर उसकी पत्नी पेट से थी। रवि की जरा भी इच्छा नहीं थी की उसके घर फिर से लक्ष्मी आए। बहुत चिंतित रहा करता था, फिर वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। बराबर इस संबंध में मुझसे फोन पर बात किया करता था। वो डरता था की यदि पुत्र रत्न की प्राप्ति ना हुआ तो क्या होगा, कैसे वो दो-दो पुत्रियों का पालन पोषण कर पाएगा,कैसे उसकी शादी होगी, शादी के लिए दहेज की राशि कहां से जुटा पाएगा………
यही सब सोच सोचकर वह बहुत चिंतित रहा करता था। वो नही चाहता था की बच्चे की जन्म हो। मैंने उसे बहुत समझाया बुझाया की अब लड़का लड़की में कोई अंतर नही, सब भगवान की देन है, अब समाज दहेज वहेज को नही मानता। अगर पुत्री भी जन्म लेती है तो कोई चिंता वाली बात नही है। वैसे तुझे पुत्र की प्राप्ति इस बार जरूर होगी। मैंने बहुत मनाया, वो मान भी गया।
मैं भी थोड़ा सोचा की अगर पुत्र नही हुआ तो क्या जवाब दूंगा।
समय बीतता गया……
आषाढ़ का दिन था। रह-रह कर बारिश जोर पकड़ लेती थी, कभी कभी लगातार एक दो घंटे तक रुकने का नाम नहीं लेती थी। इस बारिश के बीच दोपहर को मोबाइल की घंटी बजी, रवि का नंबर था, मैं अपने स्कूल में था।मुझे महिला नर्सिंग होम में आने को कहा गया। मैं स्कूल में आवेदन देकर आधे घंटे के अंदर वहां पहुंच गया। तभी बारिश संयोगवश रुकी हुई थी। मैं समझ गया था की आज कल की तारीख होगी। वहां रवि को देखा फिर वो बहुत चिंता में डूबा हुआ था,वही सब डर उसे फिर सताने लगा था। मैने फिर उसे हिम्मत दी।
प्रसूति वार्ड में उसकी पत्नी को ले जाया गया। बाहर बहुत भीड़ थी,सबके नाते रिश्तेदार इंतजार कर रहे थे। मैं कभी प्रसूति विभाग में रुकना पसंद नही करता था। मगर मित्र के ज़िद के आगे ना नही कर सका,वो भी बेचारा अकेला था ,साथ में बस बगल की एक महिला थी। अस्पताल बहुत बड़ा था, कई जच्चा, बच्चे के लिए भर्ती थी। सबके परिजन बाहर भीड़ लगाए हुए थे। बड़ा अजीब माहौल था। सबकी कानें बच्चे के रोने की आवाज पर अचानक से खड़े हो जाया करती थी।
सामने एक सरदार जी बहुत ही चहलकदमी कर रहे थे, उनके साथ पांच छः रिश्तेदार लोग भी थे,उनके पुत्र भी वहीं बैठे थे,लेकिन उसके सिर पगड़ी नही थी,इसीलिए पहचानना मुश्किल था की वो सरदार है। मैं भी अपने मित्र के साथ एक कोने में जगह पाकर बैठे- बैठे सब बड़े ध्यान से देख रहा था।
अचानक जब इसबार एक बच्चे की रोने की आवाज आई, कूदकर वो सरदार और उसका पुत्र नर्स की ओर लपका। कुछ धीरे से बात हुई, फिर कानाफूसी हुई और सबका चेहरा खिल उठा, बिना पगड़ी वाले सरदार की खुशी का ठिकाना नहीं था, मैं अब पूरी तरह समझ गया था की यही जन्म लेने वाले बच्चे का पिता है। सब रिश्तेदार हाथ में मोबाइल निकाल कर इधर उधर फैल गए।देखते ही देखते वहां कुल मिलाकर बीस से ज्यादा लोग जुट गए, अधिकतर के हाथों में मिठाई के डब्बे थे , नर्स भी अपना बकसीस दोनो हाथों से बटोर रही थी। मैं समझ चुका था की पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। बारिश होने के कारण कुछ रिश्तेदार भींगे हुए भी थे, मिठाई बट रही थी, हमलोगों को भी चार पांच प्रकार की मिठाई खानी पड़ी; जबकि, मैं उतना मिठाई का शौकीन नही हूं, लेकिन यहां सबकी खुशियों में शामिल होना जरूरी प्रतीत हुआ। हमलोग को अब भी पता नही चला था की मिठाई और ये खुशी लड़के के जन्म के कारण है या लड़की के।
अचानक मैंने एक सरदार जी से पूछ दिया, आखिर हुआ क्या है? लड़का या लड़की! बस यकीन के लिए।
उसने तुरंत इठलाते हुए कहा..अरे! ओए, .. ‘मुंडे’ ने जन्म लिया है। अब मैं भी निश्चिंत हो गया, मेरा शक सही था।
हमने कहा.. वाह!
रवि की घबराहट फिर बढ़ने लगी की मेरा क्या होगा, लड़का या लड़की यही सब सोचकर फिर वो चिंतित होने लगा।
शाम के सात बज चुके थे। सरदार जी के सब रिश्तेदार लोग जा चुके थे। जच्चा- बच्चा सब वार्ड के केबिन में जा चुके थे।
तभी अचानक एक इमरजेंसी केस आया, साथ में सात ,आठ लोग भी, कुछ लोग भींगे हुए भी थे, बारिश के कारण पहले से ही साथ में एक दो लोग मिठाई का डब्बा भी साथ लेते आए थे,की बारिश में बाद में जाना ना पड़े, उस महिला को तुरंत प्रसूति कक्ष में ले जाया गया, बाहर सब बैठ कर इंतजार करने लगे , सब लोग तरह- तरह के गप्पे हाकने में वयस्त थे की आज कल लड़के-लड़की में कोई फर्क नहीं , लड़की ही अच्छी है, कोई भी जन्म ले सब ठीक है बराबर है, सब एक समान है, , वगैरह, वगैरह …… हमलोग भी बड़े ध्यान से सब सुन और देख रहे थे, सामने ही एक नौजवान मुंह लटकाए उदास बैठा हुआ था, खैर उससे हमें क्या लेना देना था कैसे भी बैठे।
तभी अचानक से अंदर से बच्चे के रोने की आवाज सुन सबका ध्यान उधर चला गया।मेरा भी कान खड़ा हो गया, रवि भी चौंक कर उठने लगा, मगर मैने उसे बैठाते हुए कहा अभी तेरी बारी नही आई है।
कुछ लोग नर्स की ओर दौड़े, फिर सबमें कानाफूसी हुई, फिर क्या था; सब बिखर गए , इधर -उधर किनारे से बाहर निकल गए ।बाहर बारिश जोरों पर थी, सब भींगते हुए बाहर की ओर जो भागे पीछे मुड़ कर भी नही देखे, यहां तक कि शायद बच्चे के दादा -दादी तक भाग खड़े हुए। बेचारी नर्स भी इस बार हाथ मलती रह गई, मिठाई क्या ,बच्चे को देखने वाला तक कोई नही वहां ठहरा। बहुत रात भी हो चुकी थी। साथ में जो मिठाई का डब्बा एक दो लोग पहले से लेकर आए थे ,वो भी पड़ा ही रह गया। शायद उसे भी अपने मिठाई होने का पछतावा हो रहा हो। कोई खानेवाला तक नही था।
बहुत गजब का दृश्य था वहां का, एकदम सन्नाटा छा चुका था ,क्या हुआ हमलोग भी नही समझ पाए थे ,कई आशंकाएं मन में उठ रही थी। रवि ने कहा लगता है ,जच्चा या बच्चा दोनो में से कोई भगवान को प्यारा हो गया है। लेकिन हमे अंदाजा हो चुका था की जरूर लड़की हुई है।
तभी अचानक से किनारे पहले मुंह लटकाए उस युवक पर नजर पड़ी, हमने झट से उससे पूछा…
आप अभी जो बच्चा जन्म लिया है,उसके पिता है क्या….
उसने धीरे से कहा ; हां ,तो!
अब मेरे मित्र ने उससे पूछ दिया….
क्या हुआ है…उस युवक ने तपाक से रवि के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया और चिल्लाकर कहा, “लड़की हुई है” और कहकर खूब रोने लगा।
बेचारा रवि क्या करता , अपना गाल पकड़कर फिर किनारे जा कर बैठ गया और फिर सोच में डूब गया की अब उसका क्या होगा, ऐसा लग रहा था की उस लड़की के जन्म लेने का भी दोषी रवि ही है।
यही सोच में वो अपने गाल के दर्द को भी भूल गया।
ये सब देखकर मैं भी अचंभित रह गया।
अब रवि को अपनी बारी का इंतजार और सताने लगा।
11 बजे रात्रि तक हमलोग यों ही बैठे रहे, और सोचते रहे की क्या होगा अब , बैठे-बैठे थोड़ी नींद भी आने लगी थी।
तभी अचानक से बच्चे के रोने की आवाज आई और एक नर्स ने पास आकर कहा , बधाई हो रवि बाबू “लड़की हुई है”
अब तो बेचारा रवि को जैसे सांप सूंघ गया हो , मैं भी थोड़ा विचलित हुआ, रवि के कारण। इससे पहले की रवि की हालत बिगड़ती नर्स ने कहा घबराइए नही, रवि बाबू साथ में एक लड़का भी पैदा हुआ है। आपको जुड़वां बच्चे की सौगात मिली है।
अब तो जैसे उसके जान में जान आई ,वो उठ खड़ा हुआ और उस नर्स को पांच सौ का एक नोट थमाते हुए , मेरे गले से लिपट गया। मैने भी चैन की सांस ली। बाहर मूसलाधार बारिश हो ही रही थी। मैं भी सामने पड़े मिठाई के डब्बे में से एक मिठाई रवि को खिलाते हुए खुद भी मुंह मीठा किया और भगवान का शुक्रिया अदा किया की वो मेरी भी बात रख लिए और रवि को लड़का भी हुआ। और संतुलन भी कायम रह गया।
बारिश के रुकते ही मैं रवि को एक बार फिर बधाई देते हुए वहां से अपने घर को निकल गया।
घर आकर वहां के बारे में सोचते रहा की, ये तो एक दिन की स्थिति है, वहा ऐसा तो रोज होता होगा, क्या समाज सिर्फ बड़ी- बड़ी बाते करता, वह इतना भीरू हो गया है, लड़की के जन्म पर मिठाई तक खाने वाला कोई नहीं। आज भी असलियत कुछ और है। दहेज जैसी कुरीति के कारण हर बच्चे के जन्म से पहले का माहौल क्या इतना भयावह होता है। हर युवा क्या पिता बनने से पहले इस दौर से गुजरता है। “लड़की हुई है” सुनकर लोग आखिर कब तब भागेंगे, यही सब सोचते सोचते मुझे नींद आ गई। ….
_______________________?_______________________ ……………… स्वलिखित सह मौलिक………….✍️पंकज “कर्ण”
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