लड़की को इंसान तो समझो
माल नही वो मान है
किसी के घर की शान है
अपनी छोटी सोच को बदलो
लड़की को इंसान तो समझो
क्यों वो डरी – डरी सी रहती
क्यों किसी से कुछ न कहती
उसकी भी इच्छाएं है
उसके भी अरमान है
तुम्हारे दुष्कर्मों के कारण
क्यों वो घर में दुबक के बैठे
किसने बनाए ऐसे नियम
जो सिर्फ लड़की ही माने
आधी रात तक लड़के घूमे
लड़की दिन में भी न जाए
अपनी छोटी सोच को बदलो
लड़की को इंसान तो समझो
क्यों वो अपने फैसले
खुद नही ले पाती
पहले पापा ,चाचा ,भाई
फिर पति पर –
आश्रित होकर रह जाती है
अपनी छोटी सोच को बदलो
लड़की को इंसान तो समझो
उसका अपना कुछ नही
क्या है वो निर्वासित
बड़े बड़े मंचो पर जो
करते बड़ी- बड़ी बाते
अपने घर की औरतों को
खरी खोटी वो सुनाते
अपनी छोटी सोच को बदलो
लड़की को इंसान तो समझो
ऐसे खोखले समाज में
कब आएगा परिवर्तन?
खुल के जिएंगी लड़की
बेखौफ और निडर
अपनी छोटी सोच को बदलो
लड़की को इंसान तो समझो