लड़की के जीवन का आधार एक रंग
आधुनिकता का शोर मचाने वाले पुराने ख्यालात अपनाते है,
बेटा बेटी एक समान बोलने वाले खुद ही बहुत बड़ा फर्क करते हैं,
जिससे चलती दुनिया यह उसी को अपशब्द बेहिसाब बोलते हैं,
माहवारी के नाम पर इक लड़की को मानसिक तनाव बहुत देते हैं
सिर्फ इक रंग को लड़की की अस्मिता का आधार बनाते हैं,
आधुनिकता का राग अलापने वाले हम 21 वीं सदी का खुद को बताते हैं,
बिस्तर रंगने के नाम पर पहली परीक्षा इनसे शान से लेते हैं,
फिर माहवारी के नाम पर कुछ अनगिनत दोष इन्हे देते हैं,
होता शुरू जब यह चक्र इक लड़की का तो पूरा घर जश्न मनाता है,
फिर बाद में इक गुनाह जैसा पूरे जहां से इसे छिपाता फिरता है,
बनाकर महामारी पर फिल्म इक समाज को आइना दिखाया जाता हैं,
पर आंखो में पट्टी बंधी इस समाज के इसको कहां कुछ नजर आता है,
पूजता और संवारता जिससे जिंदगी अपनी यह जहां,
पता नहीं क्यूं औरत का अस्तित्व इससे जुड़ने पर
उस पर शर्म का दाग बेशर्मी से लगाया जाता है