लड़की का घर
कुदरत ने लड़की को बनाया
सबको घर दिया उसका घर भी ना बनाया।
पढ़ रही है वो मां बाप के घर
कहकर उसे अपना घर ।पर वजूद नहीं उसका उस घर में
मेहमा बन कर रह रही है उस घर में।
गुजारा था सखी सहेलियों के साथ बचपन जिस दहलीज पर।
एक दिन जाना पड़ेगा उसे यह दहलीज छोड़कर।
आज वो दिन भी आ गया
जा रही है वो किसी बेगाने के घर ।
अपने को बेगाना बेगाने को अपना
बनाना पड़ता है उसे ।
ओके गमजदा मां बाप भी अपने दिल के टुकड़े को कर देते हैं
किसी अजनबी के साथ।
फ़साना खत्म हुआ था अभी
करनी पड़ती है उसे सब की गुलामी ।
हो जाए अगर कोई खता
ना कोई काम देती है उसकी जफ़ा ।
पल भर में उसे मुक्त कर दिया जाता है उस घर से जहां वो रह रही है उसे अपना घर कह के अधिकार से।
पर सच तो यही है
वो उसका नहीं उसके पति का घर है
उसका तो कोई घर ही नहीं ।
जब चाहे कोई भी निकाल देता है उसे उसके पैरों तले जमीन खींच लेता है कोई ।कुदरत ने क्या सितम फरमाया
सबको घर दिया उसका घर भी ना बनाया