लटक जाती है
लटक जटिल है (ग़ज़ल)
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देख कर वो महक जाती है,
प्यार से झट बहक जाती है।
वायु जब भी कभी तीव्र हो,
आग अक्सर दहक जाती है।
यार की जब खबर जो ना हो,
जान सूली लटक जाती है।
देखती जब नजर गौर से,
लार मुँह में टपक जाती है।
चाँद सी हो अगर महबूबा,
साथ ही बढ़ ललक जाती है।
रोकता कोई मगर मनसीरत,
रीत पल में खिसक जाती है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली(कैथल)