लज्जा
“लज्जा असहाय नही है, वही सहाय है”
लज्जा नही होती है, दीनता या क्षीणता
ये तो धरणी रही है, हमारे संस्कारों की
जब कभी भी औचित्य है संकट में पड़ा
लज्जा रही है कवचकुंडल सुविचारों की
जब भी हम लज्जित हों, हमें ठहरना चाहिए
पश्चाताप सहित, प्रायश्चित्त भी करना चाहिए
निर्लज्जता, अनिभिज्ञता मुक्ति मार्ग पर चल कर
मूल्यों के सानिध्य में, व्यक्तित्व, निखरना चाहिए
लज्जा नहीं है आभूषण, केवल माता बहनों का
ये वो अभीष्ट चिंतन है, जो सब के लिए यथेष्ट है
लज्जा, असहाय नहीं है, लज्जा, सदा सहाय है
निर्लज्जता मुक्त समाज ही, स्वतंत्रता सर्वश्रेष्ठ है
~ नितिन जोधपुरी “छीण”