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13 Aug 2024 · 1 min read

#लघु_व्यंग्य-

#लघु_व्यंग्य-
■ आज़ादी मुबारक़।
【प्रणय प्रभात】
“आप चोरी-चोरी, चुYपके-चुपके अचानक से न डसते, तो कैसे पता चलता प्रभु, कि
आस्तीन में आप हैं?”
प्रणाम आपको। अजी,
एक पंचमी का ही दिन क्यों?
हर दिन, आप का दिन। पड़वा से मावस, प्रतिपदा से पूनम तक।
आपकी लाइफ़, आपके रूल, आपके टूल। आज़ादी आप की, आपके बाप की। जो मन आए करें। हम कौन, जो रोकें या टोकें? देश आपका, दुनिया आपकी। जहां चाहें बसें। जिसे चाहें डसें।
नाग पंचमी के बाद भी आपकी जय-जयकार। आज़ादी मुबारक़ बरखुरदार।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊

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