Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Feb 2023 · 1 min read

#लघु कविता

#लघु कविता
■ मुझमें कौन नहीं…?
【प्रणय प्रभात】
“न्याय भावना अलगू वाली
दृढ़ता मानो पत्थर सी।
दया काबुली वाले जैसी
मासूमो में जान बसी।।
धनिया वाले होरी सा
अंतर्मन सच्चा रखता हूँ।
ईदगाह वाले हामिद सा
दिल मे बच्चा रखता हूँ।
वंशीधर हूँ मुझे
अलोपीदीन सुहाएंगे कैसे?
मैं सिरचन सा बतला मुझको
ताने भाएँगे कैसे??”7
हिंदी कथा साहित्य की कुछ कालजयी कथाओं के किरदार, जो मुझमें गहराई तक बसते हैं। उनके प्रति समर्पित एक छोटी सी कविता, जो अभी अधूरी है, किंतु आज इसे प्रस्तुत करने का मन है। शायद मौक़ा भी। इसे आप मेरा संक्षिप्त परिचय भी मान सकते हैं।

1 Like · 257 Views

You may also like these posts

शीर्षक: बाबुल का आंगन
शीर्षक: बाबुल का आंगन
Harminder Kaur
लौ मुहब्बत की जलाना चाहता हूँ..!
लौ मुहब्बत की जलाना चाहता हूँ..!
पंकज परिंदा
बेटी दिवस
बेटी दिवस
Deepali Kalra
नाज़नीन  नुमाइश  यू ना कर ,
नाज़नीन नुमाइश यू ना कर ,
पं अंजू पांडेय अश्रु
नज़र चुरा कर
नज़र चुरा कर
Surinder blackpen
नदी से जल सूखने मत देना, पेड़ से साख गिरने मत देना,
नदी से जल सूखने मत देना, पेड़ से साख गिरने मत देना,
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
भक्ति गाना
भक्ति गाना
Arghyadeep Chakraborty
दूहौ
दूहौ
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
खुशियों के पल पल में रंग भर जाए,
खुशियों के पल पल में रंग भर जाए,
Kanchan Alok Malu
इश्क चख लिया था गलती से
इश्क चख लिया था गलती से
हिमांशु Kulshrestha
गांव गलियां मुस्कुराएं,
गांव गलियां मुस्कुराएं,
TAMANNA BILASPURI
चौमासा विरहा
चौमासा विरहा
लक्ष्मी सिंह
"कवियों की हालत"
Dr. Kishan tandon kranti
Attraction
Attraction
Vedha Singh
विज्ञान और मानव
विज्ञान और मानव
राकेश पाठक कठारा
दरवाजों की दास्ताँ...
दरवाजों की दास्ताँ...
Vivek Pandey
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
DR ARUN KUMAR SHASTRI
खुद्दारी
खुद्दारी
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
मिला क्या है
मिला क्या है
surenderpal vaidya
ढलता वक्त
ढलता वक्त
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
*यह समय के एक दिन, हाथों से मारा जाएगा( हिंदी गजल/गीतिका)*
*यह समय के एक दिन, हाथों से मारा जाएगा( हिंदी गजल/गीतिका)*
Ravi Prakash
इंसान कैसा है?
इंसान कैसा है?
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
रोशनी से तेरी वहां चांद  रूठा बैठा है
रोशनी से तेरी वहां चांद रूठा बैठा है
Virendra kumar
M
M
*प्रणय*
प्रकृति का अंग होने के कारण, सर्वदा प्रकृति के साथ चलें!
प्रकृति का अंग होने के कारण, सर्वदा प्रकृति के साथ चलें!
गौ नंदिनी डॉ विमला महरिया मौज
फिर कुछ अपने
फिर कुछ अपने
Chitra Bisht
देखो आई अजब बहार
देखो आई अजब बहार
Baldev Chauhan
वफ़ा  को तुम  हमारी और  कोई  नाम  मत देना
वफ़ा को तुम हमारी और कोई नाम मत देना
Dr Archana Gupta
हर एक सब का हिसाब कोंन रक्खे...
हर एक सब का हिसाब कोंन रक्खे...
डॉ. दीपक बवेजा
क्या यही संसार होगा...
क्या यही संसार होगा...
डॉ.सीमा अग्रवाल
Loading...