दवाई का नाम (लघु कथा)
दवाई का नाम (लघु कथा)
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किसी गांव से वह आया था । कमीज की जेब में से उसने किसी डॉक्टर का दवाई का नुस्खा जो मुड़ा- तुड़ा था ,बाहर निकाला और मेडिकल स्टोर वाले से कहा-” दो गोलियां दे देना “।
मेडिकल स्टोर वाले ने दवाई का पर्चा पढ़ा और उसके बाद बड़बड़ाता हुआ चला गया-” जाने कैसा लिखते हैं ! समझ में ही नहीं आता ! ”
डिब्बे में से दो गोली निकाल कर दवाई वाले ने थैलिया में डाली और कहा “₹20 हो गए”
गांव वाले ने कहा “जो दवाई तुमने दी है, वह वही तो है न, जो इस पर्चे में लिखी है ? ”
इससे पहले कि दुकानदार का नौकर कुछ कहता , दूर बैठे हुए मालिक ने जोरदार आवाज में कहा-” हम गलत क्यों देंगे? हमारे यहां सही दवाई ही मिलती है।”
अब गांव वाला अपने असली अंदाज में आ गया। बोला” दवाई तो आपको देखनी पड़ेगी । पर्चे से मिलानी पड़ेगी और यह काम अगर आप नहीं करोगे तो मैं किसी पढ़े-लिखे से कराउंगा”।
दुकानदार बोला” तुम्हें नहीं लेनी है तो मत लो ”
गांव वाला बोला” मैं दवाई का नाम ही तो पढ़ने के लिए कह रहा हूं । जरा पढ़ लो, मुझे तसल्ली हो जाएगी”
दुकानदार ने बड़े अनमने भाव से अपनी कुर्सी से उठकर नौकर के हाथ से दवाई की थैली और डॉक्टर का लिखा हुआ नुस्खा लिया और दोनों को मिलाकर पढ़ा। पढ़ते ही चीख उठा -“अरे ! यह तुमने क्या दे दिया “।
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लेखक रवि प्रकाश बाजार सर्राफा रामपुर