फर्क
गौरव और उसकी पत्नी दो बच्चों के साथ कार से वृद्धाश्रम रह रहे अपने माता पिता से मिलकर सोसायटी में मिले अपने फ्लैट के लिए लौट रहे थे। आगे चौराहे पर लाल बत्ती होने पर कार रोककर उसने चारों तरफ नजर दौडाई। फिर एक तरफ खडी चाय की रेहडी वाले से पूछा, “भैया यहां आपके बगल में जो भिखारी दंपति बैठे रहते थे वो कहाँ हैं। आज दिखाई नहीं दे रहे उन्हें कुछ देना था। “साहब सुना है उनके बेटे की चपरासी की सरकारी नौकरी लग गई है। उनका बेटा कहता है कि मैं अब अपने माँ बाप को भीख नहीं मांगने नही दूंगा। और वो उनको साथ लेकर यहां से थोडी दूर शहर में किराए के कमरे में रह रहा है। वह कहता है कि मैं उनकी सेवा अपने पास रख कर उम्र भर करूंगा। बच्चे ही बूढे माँ बाप का सहारा होते हैं। ऐसा मानना है उसका।” व्यक्ति का उत्तर था।
यह सुनकर गौरव को शर्म आ रही थी और वह अपने बच्चों से आखें नही मिला पा रहा था। वह भी तो अपने माँ बाप का इकलौता बेटा था और उसके माँ बाप ने भी उसे पढा लिखाकर खूब काबिल बनाया था। और जब वे बूढे हो गए तो उन्हें तडपने के लिए वृद्धाश्रम छोड दिया। आज वह अपने और भिखारी के बेटे में बहुत बडा फर्क महसूस कर रहा था।
अशोक छाबडा
12 जून 2017