#लघुकथा-
#लघुकथा-
■ बड़ा सवाल मुनाफ़े का।।
【प्रणय प्रभात】
हरिया दुलीचन्द के घर दूध देता था। बदले में उसकी दुकान से किराना लेता था। दोनों दयाशंकर को दूध व किराना बेचते थे। दयाशंकर दोनों को सब्ज़ी बेचता था। मथुरादास तीनों से दूध, किराना व सब्ज़ी खरीदता था। वहीं तीनों उसकी दुकान की मिठाई के नियमित ग्राहक थे। कस्बे में मेडिकल स्टोर चलाने वाला मोहसिन चारों का ग्राहक था और चारों उसके। इसी तरह आढ़तिया दाऊदयाल पांचों की सेवा लेता था। पांचों उसकी दुकान से हर तरह का अनाज खरीदते थे। ग्राहक और व्यवसायी सम्बंध सभी के बीच बरसों पुराने हैं।
अब सभी के घर में आंत, लीवर और फेफड़े के कैंसर वाले एक-एक दो-दो रोगी हैं। कुछ सदस्य सांस और पाचन-तंत्र के गंभीर रोगी हैं। कुछ बच्चों को उदर रोग घेरे हुए हैं। सभी को पता है कि यह मिलावटी खान-पान की वजह से है। बस इतना पता नहीं है कि उन सब में सबसे बड़ा पापी और मिलावटखोर कौन है? रहा सवाल अपने गोरखधंधे का, तो उस बारे में सोचने का समय किसी के पास नहीं। सभी का मानना है कि अधिक मुनाफ़ा बिना मिलावट संभव नहीं। यह और बात है कि सारा मुनाफ़ा बीते छह-आठ महीने से दू र शहर के निजी हॉस्पीटल्स और जांच-परीक्षण वालों के बैंक खातों में जा रहा है। कारोबार और मुनाफ़े का हक़ आख़िर उन्हें भी है।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)