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22 Aug 2023 · 1 min read

#लघुकथा :–

#लघुकथा :–
■ देवदास का उतरा भूत।
【प्रणय प्रभात】

अधेड़ उम्र का आधुनिक देवदास (द्वितीय) कमसिन पारो (टू) की पुष्पहार से सज्जित तस्वीर के आगे अगरबत्तियां जला-जला कर बेहाल था। गालों पर सूखे आंसुओं का खार जम चुका था। आंखें लाल और सूजे हुए पपोटे उसकी बेज़ारी के गवाह थे।
अकस्मात, घनघोर आवाज़ में आकाशवाणी हुई। आवाज़ देवदास के कानों में घुसी- “ऐ नादान! ज़रा इधर भी दे ले ध्यान। फोकट में टसुए मत बहा। हज़ामत बना कर ढंग से नहा। तू जिस पारो की याद में फड़फड़ा रहा है। वो मस्ती में जीवन बिता रही है। पुनर्जन्म के बाद “अनारो” बनकर नई-नई महफ़िल सजा रही है।”
यह सब सुन कर सत्र हुआ देवदास कुछ देर हतप्रभ रहा। फिर दम लगा कर धीरे से उठा। पारो की तस्वीर के साथ अधजली अगरबत्तियों और बासी मालाओं का ढेर उठाया। एक झोले में भरा और जा बैठा दरवाज़े पर।
वो अच्छी तरह जानता था कि स्वच्छता मुहीम का नग्मा गुंजाती नगर-निगम की कचरा गाड़ी उसके कूचे में आने ही वाली है। हर रोज़ की तरह, कुछ ही देर बाद। साफ था कि उसके सिर पर सवार इश्क़ का भूत उतर चुका था।

●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

Language: Hindi
1 Like · 262 Views

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