#लघुकथा
#लघु(तथा)कथा
■ छोटीं राहत, बड़ी मुसीबत।।
【प्रणय प्रभात】
झप्प की आवाज़ के साथ ही बिजली गुल हो गई। सिर-दर्द से बेहाल विनय ने चैन की सांस ली। आज वो बिजली गोल होने से भन्नाया नहीं था। वजह था उस अनियंत्रित कोलाहल का थम जाना, जो सुबह-सुबह उसकी खोपड़ी भन्नाने का मूल कारण था। कुछ दिनों से जारी शोरगुल धार्मिक कार्यक्रम के नाम पर कर्णभेदी आवाज़ में चीखने-चिल्लाने की देन था।
आस्था की भावना के साथ बुलाया गया व्यावसायिक बेसुरों का दल जी का जंजाल साबित हो रहा था। बिजली जाने और माइक से गूंजते शोर पर विराम लगने से राहत महसूस करते विनय के पास आज बिजली वालों को कोसने का कोई कारण नहीं था। उसे शायद अंदाज़ा नहीं था कि बिजली का जाना राहत के बजाय और बड़ी आफ़त का सबब बन जाएगा।
इस मुसीबत का पता उसे दो ही मिनट बाद तब चला, जब कैरोसिन से चलने वाला भारी-भरकम जनरेटर गड़गड़ाने लगा। मिट्टी के तेल की दमघोंटू गंध के साथ जानलेवा धुआं सारे कमरे में भर चुका था। बीमार विनय का सांस लेना दुश्वार हो चुका था। वहीं दूसरी ओर गड़गड़ाते और प्रदूषण फैलाते जनरेटर की आवाज़ के साथ दल के कर्कश स्वरों का मुक़ाबला और ज़ोर-शोर से शुरू हो चुका था तथा गला-फाड़ अंदाज़ में शांति-पाठ के समवेत स्वर घनघोर अशांति को जन्म दे रहे थे। कथित लोक-मंगल की भावना के साथ कार्यक्रम कराने वालों को इस आपदा से कोई लेना-देना नहीं था। क्योंकि ना तो विषैली हवा का रुख उनके अपने घरों की ओर था, ना ही भोंपू का मुख।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)