#लघुकथा
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■ लो, और करो आराम…
【प्रणय प्रभात】
बिना काम के भारी वेतन वाले अच्छे ओहदे पर विराजमान शांति मैडम बड़ीआराम-तलब थीं। खाना-पीना और आराम फ़रमाना पसंद था उनको। कुछ सुनना या समझना कतई नापसंद था।
आपदा और महामारी के संक्रमण वाले दौर में भी उन्होंने अपनी मुँहलगी महरी को काम पर बनाए रखा। एक दिन बर्तन माँजते समय खांसती महरी कहीं से लाए वायरस किचन में ही छोड़ गई।
अब मैडम परिवार के बाक़ी सदस्यों के साथ अस्पताल की मेहमान हैं और आइसोलेट होकर आराम फ़रमा रही हैं। महरी अब भी औरों को खर्चीले आराम के अवसर सौगात में देती घूम रही है।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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