#लघुकथा
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■ घोंचू बंदा, घाघ बंदी…!
【प्रणय प्रभात】
“क्या बात है जी, हमारी किसी भी पोस्ट पर आजकल कोई कमेंट नहीं?” फेसबुकी बंदे ने हिम्मत कर के एक दिन अपनी महिला मित्र से पूछ ही लिया।
“ना जी ना! ऐसा कुछ भी नहीं। दरअसल आपका लेखन इतना ज़बरदस्त है कि उस पर कुछ लिखने को सूझता ही नहीं।” यह कह कर चालाक बंदी ने तुरंत बाउंसर पर हुक-शॉट जड़ दिया।
बंदा कहाँ चुप बैठने वालों में था। अगली बॉल यॉर्कर बना कर फेंक बैठा- “मतलब लेखन थोड़ा सा कमज़ोर करूं तो आप कमेंट देंगी?”
होशियार बंदी ने इस बार भी बॉल बाउंड्री के पार भेज दी। यह कहते हुए- “अरे! कमज़ोर पोस्ट पर भी कोई कमेंट देता है क्या…?
बंदे के दिमाग़ी पिस्सू अब ख़ामोश हो चुके हैं। उस घोंचू को समझ में आ गया है कि दुनिया किस हद तक घाघ हो चुकी है।।