#लघुकथा
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■ मास्टर माइंड हुशियारी लाल
【प्रणय प्रभात】
मुश्किल से बीए पास हुशियारी लाल का दिमाग़ अचानक चला। उसने कुछ पढ़े-लिखों को समाजसेवा का ज्ञान दिया। फिर अपनी पहुंच के बलबूते मदद बटोर कर उसने एक संस्थान खोल डाला। पूरी तरह जेबी और नियंत्रित। जिसका काम था इंटर पास युवाओं को ग्रेज्युएट, पोस्ट ग्रेज्युएट बनाना और शैक्षणिक क्रांति का अगुआ बनना।
कुछ ख़बर-नवीसों की मदद से उसने अफ़सरों, नेताओं व गणमान्यों को चूना लगाया। वो सारे अतिथि बनकर समय-समय पर संस्था में आने-जाने लगे। संस्थान को मीडिया कव्हरेज मिलता गया। नतीजतन फंड और डोनेशन की कमी भी दूर हो गई। फ़ोकट में लगन से पढ़ाने वाले उच्च शिक्षित इस खेल को समझे बिना आदर्श टीचर बने रहे। समाजसेवा के नाम पर मुफ्त का भवन मिल गया। नेता निधि से मोटा अनुदान भी हाथ आ गया। सहयोगी बिना कपट या लालच के ईमानदारी से अपने काम में जुटे रहे।
उधर हुशियारी लाल दबे पाँव विद्वानों का लीडर बनता चला गया। संस्थान की शाखाएं यहां-वहां सब जगह उग आईं। ख्याति स्थानीय से राष्ट्रीय हो गई। अब सुनने में आया है कि वो नागरिक अलंकरण के लिए अपना नाम आगे बढाने की जुगत में है। ताकि पर्दे के पीछे संचालित उसके धर्म और समाज-विरोधी कृत्यों को सरकारी कवच मिल जाए और उसका ख़ज़ाना कारून के ख़ज़ाने को मात दे सके। धर्म और समाज जाए भाड़ में।।
■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)