#लघुकथा
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■ एक बेचारा…!
【प्रणय प्रभात】
दो जून की रोटी में बेगार करने वाले कुछ दिनों के लिए अपने गाँव चले गए। नौकरीपेशा मंजुला बच्चों की देख-रेख को लेकर कुछ देर के लिए पशोपेश में आ गई। फिर उसने हमेशा की तरह दिमाग़ चलाया। एनजीओ में काम करने वाले शौहर को आदेश जारी कर दिया कि कुछ दिन की छुट्टी ले और बच्चे संभाले।
कुल मिला कर हर बार की तरह इस बार भी मंजुला के पास एक ही चारा था। वो था बेचारा शौहर। जिसकी कमाई बीवी से एक चौथाई थी। भले ही नौकरी उसने जुगत से लगवाई थी।।
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■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)