लघुकथा
लघुकथा
शीर्षकः बहू
“देखो भाभी,पापा की बातों का बुरा मत माना करो।अब उनकी उम्र हो गयी है,ऊपर से बीमार भी हैं।अगर कुछ उल्टा सीधा बोल भी रहे हैं,तो बुजुर्गों की बात का बुरा नहीं मानते…और हाँ उनके खाने -पीने का भी खास ख़्याल रखा करो….इस घर की बहू होने के नाते आपका फर्ज़ है भाभी……बेटियाँ तो दूर रहकर कुछ भी नहीं कर पातीं…..”सुमन अपनी भाभी,नेहा से फोन पर बात करते हुए बड़े समझाने वाले स्वर में कह रही थी। ”
“बहू ..अरे बहू..! कहाँ चली गयीं, आज चाय देना ही भूल गयी क्या बेटा ?,”दूसरे कमरे से सुमन की बीमार सास ने कराहती आवाज़ में कहा ।सास की आवाज़ सुनकर सुमन ने कहा,”रुको भाभी ,अभी बाद में फोन करती हूँ..पापा जी का ख्याल रखना…।”कहकर सुमन ने फोन काट दिया। “इस बुढ़िया को पल भर भी चैन नहीं…. पता नहीं कब मरेगी..नाक में दम करके रखा है….पूरा दिन कभी चाय,कभी पानी…….कभी खाना…. बहू…! बहू….! करके इस बुढ़िया ने तो जीना मुश्किल कर दिया है….।”बड़बड़ाती सुमन चाय का पानी गैस पर रखने लगी।
समाप्त…
मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद