भ्रूण हत्या (लघुकथा)
भ्रूण हत्या ( लघुकथा)
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पटल पर पोस्ट की गई रचना को पढ़कर एडमिन महोदय बुदबुदाए- लोग कुछ भी लिखकर पोस्ट कर देते हैं और समझते हैं कि वे साहित्यकार हो गए।
अरे भई, भाव और भाषा का ध्यान रखना पड़ता है, बड़ी मशक्कत करनी पड़ती तब कोई रचना तैयार होती है।
फिर उन्होंने जलज की पोस्ट पर टिप्पणी लिखी- भाव पक्ष ज़रा कमज़ोर है और भाषा में कसावट का अभाव है।
जलज, जिसने बड़े उत्साह से रचना पोस्ट की थी , के उत्साह पर टिप्पणी पढ़कर तुषारापात हो गया।
जलज ने लिखा- हार्दिक आभार महोदय, आपने मेरी रचना को समय दिया और टिप्पणी की।सर, एक निवेदन है कि कृपया उदाहरण स्वरूप एक वाक्य परिमार्जित कर मार्गदर्शन करें।एक सप्ताह व्यतीत हो जाने के बाद भी उसे कोई उत्तर नहीं मिला।एडमिन महोदय सुबह- शाम पटल पर आकर अन्य लोगों की रचनाओं पर टिप्पणी करते रहे और जलज उनके मार्गदर्शन की बाट जोहता रहा।एक सप्ताह व्यतीत हो जाने पर भी जब कोई उत्तर नहीं मिला तो लेखन के प्रति उसका उत्साह ठंडा पड़ गया।
– डाॅ. बिपिन पाण्डेय