पंद्रह दिन बाद (लघुकथा)
पन्द्रह दिन बाद ( लघुकथा)
——————-
मैंने अपने मित्र कमरुद्दीन को ईद की बधाई देने के लिए सुबह नौ बजे के आस-पास फोन लगाया तो फोन उसकी श्रीमती जी ने उठाया।
मैंने उन्हें नमस्ते बोलते हुए ईद की मुबारकबाद दी, तो उन्होंने कहा – भइया ईद मिलने घर कब आ रहे हो?
मैंने कहा, भाभी जी कितने बजे सेवइयाँ खाने आऊँ ? यही जानने के लिए तो मैंने फोन किया है।पर क़मर भाई ने तो बात की नहीं, फोन आपको पकड़ा दिया।
वह बोलीं- अरे नहीं भैया, दरअसल बात ये है कि वे अभी कुछ देर पहले ऑफिस चले गए हैं और फोन घर पर ही छूट गया है।
मैंने कहा कि आज तो ऑफिस बंद है, ईद की छुट्टी है फिर ऑफिस क्यों गया? भाभी जी ने कहा कि आज पर्यावरण दिवस भी तो है। आज इनके ऑफिस में पौधे लगाए जाने हैं, इसलिए गए हैं । कह रहे थे जाना बहुत जरूरी है।
मैंने कहा ठीक है ये भी तो एक पुण्य का काम है।कुछ देर बाद उसने पौधे लगाते हुए बहुत सारी फोटो फेसबुक और व्हाट्स ऐप पर पोस्ट कीं। सबने उसके काम की खूब तारीफ़ की, मैंने भी की और लिखा कि ये आज की आवश्यकता है।लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक होना चाहिए। प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम करना चाहिए। तभी हमारी आने वाली पीढ़ियाँ सुरक्षित रह पाएँगी।
पंद्रह दिन बाद जब मैं उसके ऑफिस किसी काम से गया और उससे मिला तो मैंने कहा – कमर भाई आपने तो अपने ऑफिस में ईद वाले दिन कई पौधे लगाए थे, वे कैसे हैं? चलो जरा मुझे भी दिखाओ,कहाँ, कौन-कौन से पौधे लगाए। तो वह न नुकुर करने लगा। बहुत जोर देने पर वह मुझे ऑफिस के पीछे उस जगह पर लेकर गया ,जहाँ बड़े धूम धाम से फोटो खिंचवाते हुए पौधे लगाए गए थे।
पन्द्रह दिन बाद वहाँ पर एक भी पौधा जीवित नहीं था। जून की भयंकर गर्मी में देख – रेख के बिना सभी सूख गए थे।मैंने कमर से कुछ नहीं कहा पर मन ही मन सोच रहा था कि अगर फोटो खिंचवाने के लिए काम किए जाएँगे तो देश और समाज का भला कैसे होगा। कमर भाई को भी अपनी गलती का अहसास हो चुका था क्योंकि वे भी मुँह लटकाए वहीं खड़े थे;बोले, माली से कहा था – पौधों का ध्यान रखना पर–।’
आगे की बात मैंने बिना बोले ही समझ ली थी क्योंकि कुछ बातें बिना बोले ही समझ ली जाती हैं।
डाॅ बिपिन पाण्डेय