#लघुकथा / #सम्मान
#लघुकथा
■ ऑनलाइन सम्मान
【प्रणय प्रभात】
स्वयम्भू कविराज मांगीलाल कुबेर के व्हाट्सअप पर एक संदेश आया। संदेश दिल्ली की किसी विशुद्ध व्यावसायिक जेबी और फ़र्ज़ी साहित्यिक संस्था का था। संदेश में लिखा था कि इंस्टाग्राम पर किए गए ऑनलाइन आवेदन के आधार पर उनका चयन “मंगतराम मंगलू सम्मान” के लिए किया गया है। वे संस्थागत पंजीयन शुल्क के तौर पर ढाई हज़ार रुपए गूगल-पे या पेटीएम के जरिए भेज दें। ताकि उन्हें उनका “सम्मान-पत्र” स्पीड-पोस्ट से भेजा जा सके।
दिन-रात इस तरह के सम्मान की जुगाड़ में भिड़े रहने वाले मांगीलाल गदगद थे। आखिर उनके अपने संग्रह में ऐसे सम्मानों की संख्या आधा सैकड़ा जो होने वाली थी। वो भी ऊटपटांग टाइप की अधकचरा छाप रचनाओं पर। जिन्हें पढ़ने को पाठक तो दूर, घर वाले राज़ी नहीं थे। पेशे से सरकारी लिपिक थे। वेतन के साथ ऊपरी कमाई अच्छी-खासी थी। जिसका एक हिस्सा ऑनलाइन सम्मान खरीदने में खर्च करना उनके लिए बेहद आसान था।
दूसरी ओर तथाकथित साहित्यिक संस्था भी 500 सम्मान पत्र छपवा कर सम्मानित रचनाकारों को भेजने की तैयारी में थी। जिसके बदले उसे ऑनलाइन शानदार कमाई जो हो रही थी। वो भी बिना किसी माथापच्ची के। कविता या साहित्य का ककहरा जाने बिना। आंचलिक अखबारों में मुफ़्त का प्रचार मिल रहा था सो अलग। भाड़ में जाए साहित्य और भट्टी में जाएं असली रचनाकार।।
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#पोल_खोल_अभियान और
#बखिया_उधेडो_मिशन के अंतर्गत लिखित व प्रसारित